बच्चों की मनोविज्ञान और पैरेंटिंग: बदलते समय की सबसे बड़ी चुनौती- डॉ स्नेहलता उमराव

ब्रजेश पोरवाल-एडीटर &चीफ टाइम्स ऑफ आर्यावर्त 7017774931

आज का बच्चा कल से बिल्कुल अलग है। डिजिटल युग, तेज़ रफ्तार जीवनशैली और बदलते सामाजिक वातावरण ने बच्चों के सोचने-समझने के ढंग, खानपान की आदतों और करियर की दिशा को गहराई से प्रभावित किया है। एक प्रिंसिपल और चाइल्ड साइकोलॉजी और पेरेंटिंग एक्सपर्ट होने के नाते मेरा अनुभव बताता है कि अब पैरेंटिंग केवल बच्चों की शिक्षा तक सीमित नहीं रही, बल्कि यह उनके मानसिक स्वास्थ्य, पोषण, सामाजिक व्यवहार और भविष्य की दिशा से गहराई से जुड़ चुकी है।पहले बच्चे खेलकूद, परिवार और पड़ोस से सामाजिकता सीखते थे।आज बच्चे वर्चुअल दुनिया में ज़्यादा सक्रिय हैं और वास्तविक जीवन में संवाद व धैर्य की कमी देखी जा रही है।”इंस्टेंट रिज़ल्ट” की आदत ने उन्हें असफलता सहने में कमजोर बना दिया है।
उनका मानना है कि “यदि बच्चों को सही दिशा में सामाजिक मूल्य नहीं दिए गए तो आने वाली पीढ़ी संवेदनशीलता और सहयोग से दूर हो जाएगी।जंक फूड और पैक्ड स्नैक्स ने बच्चों की थाली से पौष्टिकता छीन ली है।नतीजतन, कहीं कुपोषण तो कहीं मोटापे की समस्या बढ़ रही है।

डॉ स्नेहलता उमराव
चाइल्ड साइकोलॉजी एंड पेरेंटिंग एक्सपर्ट

वैज्ञानिक शोध बताते हैं – संतुलित आहार बच्चों की स्मरण शक्ति, ध्यान और व्यवहार सुधारता है।
इसलिए जरूरी है कि घर और स्कूल मिलकर बच्चों में स्वस्थ भोजन की आदत डालें।आज का करियर पैटर्न हमारे पारंपरिक सोच से परे है।पहले करियर का मतलब था – डॉक्टर, इंजीनियर या सरकारी नौकरी।

आज बच्चे डिजिटल मीडिया, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, डिजाइन, उद्यमिता, खेल और रिसर्च जैसे क्षेत्रों में करियर बनाना चाहते हैं।लेकिन कई अभिभावक अब भी पारंपरिक सोच पर अटके हुए हैं।आज के युग में “करियर केवल रोज़गार नहीं, बल्कि जीवन जीने का तरीका है।”

पैरेंटिंग की नई चुनौतियाँ

आज लोगों के पास समय की इतनी कमी है कि माता-पिता बच्चों से बात करने का समय नहीं निकाल पाते।बच्चे तुलना का दबाव झेल रहे हैं “देखो, तुम्हारा दोस्त कितना अच्छा कर रहा है” – यह वाक्य बच्चों का आत्मविश्वास तोड़ देता है।
कई बार माता-पिता अपने अधूरे सपने बच्चों पर थोप देते हैं.

आज बच्चों और अभिभावकों के सामने 5 बड़ी चुनौतियाँ हैं

  1. तकनीकी लत (Addiction) – मोबाइल और इंटरनेट पर अत्यधिक समय।
  2. मानसिक स्वास्थ्य – तनाव, अवसाद और आत्मविश्वास की कमी।
  3. खानपान की गड़बड़ी – जंक फूड और पोषण की कमी।
  4. मूल्यों का ह्रास – धैर्य और अनुशासन की कमी।
  5. करियर असमंजस – बच्चों की रुचि और माता-पिता की अपेक्षाओं में टकराव।

ऐसे में समाधान सिर्फ एक है ,मिलकर बदलें तस्वीर,अभिभावक बच्चों को समय दें और उनकी भावनाएँ सुनें।पोषण और दिनचर्या पर ध्यान दें।
करियर में बच्चों की रुचि का सम्मान करें।शिक्षक ,शिक्षा के साथ जीवन कौशल और मूल्य शिक्षा पर बल दें।स्कूल में हेल्दी फूड कैंपेन और करियर गाइडेंस प्रोग्राम चलाएँ।बच्चे, आत्म-अनुशासन और आत्म-चिंतन की आदत डालें।जंक फूड छोड़कर पौष्टिक आहार अपनाएँ।करियर और जीवन में संतुलन रखें।और समाज,बच्चों पर अनावश्यक दबाव डालने की बजाय उन्हें प्रोत्साहन दें।सामूहिक खेल और गतिविधियों से सामाजिक मूल्य सिखाएँ।

आज की पीढ़ी ऊर्जावान, रचनात्मक और प्रतिभाशाली है। वे तकनीक और नए विचारों से समाज को आगे बढ़ा सकते हैं। लेकिन यह तभी संभव होगा जब पैरेंटिंग, शिक्षा और समाज मिलकर उन्हें संतुलित पोषण, मजबूत मूल्य और सही करियर मार्गदर्शन देंगे।

“बच्चों को केवल अंक और करियर की मशीन न बनाकर, उन्हें संवेदनशील, आत्मनिर्भर और जिम्मेदार इंसान बनाना ही असली पैरेंटिंग है।”

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